बसंत प्रफुल्लता, प्रसन्नता और पूर्णता का परिमाण है। बसंत से तात्पर्य एक ऐसा काल, समय अथवा ऋतु जब प्रकृति प्राणी और परमात्मा तीनों एक साथ प्रफुल्लित होते हैं। अपनी पूर्ण मनोहारी छटा को बिखेरकर संसार को शायद यही बताते हैं कि हममें अर्थात प्रकृति, प्राणी और परमात्मा में कोई भिन्नता नहीं है। यानी हम एक हैं। शायद यही वजह है कि जब भी बसंत आता है धरती के सौंदर्य को देख मनुष्य का मन पुल्कित होने लगता है। हृदय आस्था से भर जाता है और ईश्वर थोड़ी सी पूजा-उपासना से ही प्रसन्न होने लगता है। बीते दिनों में पसरे रहे अपार दुख शायद अब दूर हो गये हैं। लगता है अब ऋतु बसंत का आगमन होने ही वाला है। वन-उपवन फूलों से महक उठे, ऋतु बसंत ने दी दस्तक। अकाश में पंछी चहक उठे, मौर लदे आमों ने झूका लिया मस्तक! वास्तव में धरती पर वन और उपवनों में अब फूलों की बहार है। गुलाब गुरूर में है वह झुक अपनी महक पर इठला रहा है। गेदों का गौरव तो के देखो बसंत की मस्ती में फूलता ही जा रहा है। भी खेतों में बहती पुरवाई संग लहराती गेहूं की करोगे बालियां जैसे श्रीकृष्ण संग महारास की गोपियां। तुम सरसों के खेतों ने जैसे ओढ लिया पीतांबर। सुबह पूर्ण अग्नि में अर्पण शाम पंछियों से चहक रहा सारा अंबर। खेतों की मेड़ों पर टेसू के वृक्ष शायद साधु-संन्यासी बनने की तैयारी में है। यानी ये जल्द ही भगवा फलों से लदने वाले हैं। अमृत फल देने वाले आम्र वृक्षों ने जैसे कहीं अपने सिर मौर-मुकुट धारण कर लिया है और अपनी महानता का तनिक भी अभिमान न करते हुए इनके सिर श्रद्धा व सम्मान से झुक गये हैं। जो शायद मानव मात्र को यही संदेश दे रहे हैं कि जब समाज तुम्हारे माथे पर मुकुट सजाए, तुम्हें अपना सिरमौर बनाए तब तुम भी इसी तरह से झुक जाओ। उस ऊपर वाले के चरणों में प्रकृति झुक जाओ। उस ऊपर वाले के चरणों में प्रकृति के सुंदर फूल चढ़ाओ और पूरे श्रद्धा भाव से स्वयं भी समर्पित हो जाओ। तब तुम स्वयं अनुभव करोगे कि प्रकृति, प्राणी और परमात्मा एक हैं और तुम इस संसार में जो कुछ मनोवांछना करोगे वह पूर्ण होने में कोई संदेह नहीं रहेगा।
वन-उपवन फूलों से महक उठे, ऋतु बसंत ने दी दस्तक आकाश में पंछी चहक उठे, मौर लदे आमों ने झुका लिया मस्तक!