स्वच्छ और सुंदर शहर का मतलब क्या होता है? क्या चलती सड़कों किनारे दुकानों पर लटकते मांस के लोथड़े ही किसी शहर की शोभा हैं? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि शहर में हर कहीं मांस विक्रय बंद हो। इसकी कहीं अलग व्यवस्था की जाए। बात तो जायज है। वास्तव में मांस विक्रय का चलन तेजी से बढ़ा है, जिसे जनसाधारण भले पसंद करे तो करे, लेकिन शहर में वास करने वाले ईश्वर, अल्लाह, वाहे गुरू और ईसा को तो कतई पसंद नहीं होगा। जिस शहर में मंदिरों के शिखर पर स्वर्ण कलश दकते हों, मस्जिद के परकोटे और मीनार चमकती हो, गुरुद्वारों में वाहेगुरू की छवि दमकती हो और चर्चों में ईसा का ऐश्वर्य झलकता हो, वहां की सड़कें-गलियां भी स्वच्छ हों और खुशबू से महकनी चाहिए। इसके लिए शहर के सफाई कामगारों ने दिन-रात मेहनत की है और शहर में सफाई की मिसाल पेश की है, लेकिन सड़कों पर लटकते लोथड़े स्वच्छता और सुंदरता में बाधक हैं। अपने बस्ती-नगर, शहर को स्वच्छ सुंदर बनाने का हैं अभियान कोई नई बात नहीं है। प्राचीन पौराणिक मनोकामना काल में भी एक से बढ़कर एक सुंदर व स्वच्छ नगर नहीं रहे हैं जिनमें प्रभु राम की अयोध्या, श्रीकृष्ण की द्वारिका और राजा जनक की नगरी मिथिला की तो शोभा न्यारी है ही। गौर करने योग्य बात ये है कि रावण भले ही आतंकी है अन्यायी है और उसके भाई कुंभकरण से लेकर कुटुंबोजन व सहयोगी शराबी व मांसाहारी हैं लेकिन रावण की लंका सुंदर व स्वच्छ नगरी है। लंका की सुंदरता को देखकर श्री हनुमानजी जैसे भक्त प्रसन्न होते हैं और गोस्वामी तुलसीदास जी भी लंका की सुंदरता का वर्णन करने से नहीं चूकते- कनक कोट विचित्र मनिकृत सुंदरायतना घना। चउट हट्ट सुबट्ट बी थीं चारू पुर बहू बिधि बना। अर्थात विचित्र मणियों से जड़ा हुआ सोने का परकोटा है, उसके अंदर बहुत से सुंदरसुंदर घर हैं, चौराहे, बाजार, सुंदर मार्गऔर गलियां हैं। ऐसा ही सुंदर व स्वच्छ शहर अपना भी हो यही मनोकामना है। इसमें सहयोग व संकल्प सबका हो नहीं कोई दुर्भावना- अगर पाना है सुंदर व स्वच्छ शहर का सम्मान।...तो चलती सड़कों पर मत लगने दो मांस की दुकान!
अगर पाना है सुंदर व स्वच्छ शहर का सम्मान ...तो चलती सड़कों पर मत लगने दो 'मांस' की दुकान!