देश के बिहार राज्य में अभी आमचुनाव कराए गए वहीं राजस्थान, जम्मू काश्मीर एव हरियाणा में नगरीय निकायों एवं पंचायतों के चुनाव सम्पन्न कराए गए है। इन राज्यो में भी कोरोना की स्थिति अमूमन मध्यप्रदेश के समान ही है।
मध्यप्रदेश में पंचायत चुनाव में निर्वाचित सदस्यों का कार्यकाल मार्च 2020 में समाप्त हो गया था, राज्य में कुल 407 नगरीय निकायों मे से 307 का कार्यकाल 25 सितम्बर को समाप्त हो गया है। वहीं 8 नगरीय निकायों का कार्यकाल जनवरी-फरवरी में पूर्ण होने जा रहा है। त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में पंच, सरपंच, जनपद प्रतिनिधि एवं जिला पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल मार्च 2020 में समाप्त हो गया है। जिसके बाद पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा नवीन व्यवस्था करते हुए प्राशासकीय समिति का गठन किया गया, जिसमें ग्राम के पूर्व सरपंच को ग्राम प्रधान बनाकर उन्हें वित्तीय प्रभार भी पूर्व के भांति प्रदान किये गए। मसलन निर्वाचन का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भी सरपंच ग्राम प्रधान के रूप अपना कार्य कर रहें है। जबकि नगरीय निकायों में कार्यकाल खत्म होने के बाद प्रशासक की नियुक्ति का प्रावधान है।
यहाँ सबसे बड़ा सवाल उठता है कि कोरोना संक्रमण की बेहद गम्भीर स्थिति के मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव सम्पन्न कराए गए थे। अन्य प्रदेशों में भी लोकसभा, विधानसभा, नगरीय निकाय एवं पंचायतों के निर्वाचन कराएं जा रहे है। मध्यप्रदेश में पंचायत एवं नगरीय निकायों के चुनावों को कोरोना संक्रमण का आधार बनाकर स्थगित करने की प्रक्रिया इसलिए अधिक अचंभित कर रही है।
एक ओर प्रदेश सरकार के सभी कलेक्टरों एवं जिला चिकित्सा अधिकारी को राज्य में भोपाल को छोड़कर सभी कोविड सेंटरों को 1 जनवरी से बन्द करने के आदेश दिए है। जिसका आशय प्रदेश में कोरोना की स्थिति नियंत्रण में होना माना जा रहा है।
पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम पंचायतों का बेहद महत्व है। ग्राम की यह बॉडी ग्राम पंचायतों के रहवासियों द्वारा निर्वाचन की प्रक्रिया से चुनी जाती है जो ग्राम सभा के प्रस्तावों के माध्यम से ग्राम के विकास की योजना बनाती है, उसे मूर्त रूप भी प्रदान करती है। मार्च 2020 को कार्यकाल खत्म होने के बाद एक पूर्व सरपंच का ग्राम प्रधान के नाम से ग्राम का प्रमुख बने रहना संवैधानिक दृष्टि से भी उचित नहीं कहा जा सकता है।
ग्राम पंचायतों एवं नगरीय निकायों के चुनावों से निर्वाचित प्रतिनिधि जनता का चुना हुआ सदस्य होता है। इन प्रतिनिधियों की जनता के प्रति जवाबदेही होती है,जनता से इनका जुड़ाव होता है। यह प्रतिनिधि अपने क्षेत्र की समस्याओं से भी वाकिफ होते है। ग्राम पंचायत के कार्यकाल के खत्म होने के बाद सरपंचों के प्रति अब ग्राम की जनता का नैतिक विश्वास भी कम हो गया है। जिसे जनता ने पांच साल के लिए चुना है। वह शासन के आदेश कैसे 10 माह तक उसी दायित्व का निर्वहन कर सकता है? उसे संवैधानिक रूप से भी ग्राम के नेतृत्व का अधिकार नही रहा है।
इन निर्वाचनों के स्थगित किये जाने के पीछे जनस्वास्थ्य का हवाला दिया जा रहा है, जबकि प्रदेश में विधानसभा के उपचुनाव के दौरान कोरोना संक्रमण के हालात अधिक गम्भीर थे। जनता के स्वास्थ्य की स्थिति बड़ी गम्भीर थी, प्रदेश के चिकित्सालयों में कोरोना सक्रमण के मरीज भरे पड़े थे। प्रदेश में भय और डर का माहौल बना हुआ था। अब जबकि आमजन में यह भय कम हुआ है, राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा इन चुनावों को तीन महीने के लिए स्थगित किये जाने का निर्णय अचंभित करने वाला है। ग्राम पंचायत के सरपंच का कार्यकाल 10 महीने पूर्व खत्म हो गया है। वह कब तक प्रधान के रूप में सरपंचीय दायित्वों का निर्वाह करेगा। नैतिक दृष्टि से तो यह उचित नही कहा जा सकता है और आगे भी कोरोना संक्रमण के आधार पर इन चुनावों को आगे बढ़ाए जाने की संभावना से भी इंकार नही किया जा सकता है। राज्य निर्वाचन आयोग ने बिना किसी देरी किये पंचायत एवं नगरीय निकायों के निर्वाचन सम्पन्न कराने चाहिए। प्रदेश में कोविड सेंटरों को बंद कर निर्वाचन को स्थगित करना सवाल पैदा करता है।