कालों के काल महाकाल की नगरी से जुड़े हैं कई राज
देश दुनिया में यूं तो भगवान शिव शंकर के अनेक मंदिर हैं। वहीं भगवान शिव को ही महादेव के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे में आज हम आपको देवों के देव महादेव भगवान शंकर की नगरी कही जाने वाली अवंतिका नगरी यानि उज्जैन के बारे में कुछ खास बताने जा रहे हैं, जिनमें से कई बातें शायद आपमें से कई लोग जानते भी नहीं होंगे। दरअसल महादेव/महाकाल की नगरी अवंतिका नगरी यानि उज्जैन अपने आप में बहुत अद्भुत है। शिप्रा नदी के किनारे बसे और मंदिरों से सजी इस नगरी को सदियों से महाकाल की नगरी के तौर पर जाना जाता है। उज्जयिनी और अवंन्तिका नाम से भी यह नगरी प्राचीनकाल में जानी जाती थी। स्कन्दपुराण के अवन्तिखंड में अवन्ति प्रदेश का महात्म्य वर्णित है। उज्जैन के अंगारेश्वर मंदिर को मंगल गृह का जन्मस्थान माना जाता है, और यहीं से कर्क रेखा भी गुजरती है। मध्य प्रदेश का उज्जैन एक प्राचीनतम शहर है जो शिप्रा नदी के किनारे स्थित है और शिवरात्रि, कुंभ और अर्ध कुंभ जैसे प्रमख मेलों के लिए प्रसिद्ध है। प्राचीनकाल में इस शहर को उज्जयिनी के नाम से भी जाना जाता है उज्जयिनी का अर्थ होता है एक गौरवशाली विजेता। उज्जैन धार्मिक गतिविधियों का केंद्र है और मुख्य रूप से अपने प्रसिद्ध प्राचीन मंदिरों के लिए देशभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। हजारों लाखों साल से उज्जैन नगरी को भले ही कभी अवंतिका तो कभी कनकश्रृंगा या कुशस्थली या भोगस्थली या अमरावती जैसे कई नामों से जाना गया। लेकिन इन सभी नामों के बावजूद यह सदैव महाकाल की ही नगरी कहलाई। देश भर में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं, उनमें से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल के रूप में विराजमान है। ये दुनिया का इकलौता ज्योतिर्लिंग है, जो दक्षिणमुखी है। माना जाता है कि दक्षिण दिशा मृत्यु यानी काल की दिशा है और काल को वश में करने वाले महाकाल हैं। दक्षिण दिशा का स्वामी भगवान यमराज है। दक्षिणमुखी ज्योतिलिंग के दर्शन मात्र से ही जीवन स्वर्ग तो बनता ही है मृत्यु के उपरांत भी यमराज के दंड से मुक्ति पाता है। महाकालेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में दक्षिणमुखी होने के कारण प्रमुख स्थान रखता है, महाकालेश्वर मंदिर में अनेकों मंत्र जप जल अभिषेक एवं पूजा होती हैं। महाकालेश्वर में ही महामृत्युंजय जाप भी होता है। महाकालेभर मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है. जहाँ कई देवी-देवताओं के छोटे- बडे मंदिर हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए मुख्य द्वार सागर तक कोटरी तय करनी पड़ती है। इस मार्ग में कई सारे पक्के चढ़ाव उतरने पड़ते हैं, परंतु चौड़ा मार्ग होने से यात्रियों/ दर्शनार्थियों को अधिक परेशानियां नहीं आती हैं। गर्भगृह में प्रवेश करने के लिए पक्की सीढिय़ां बनी हैं।
आकाश का मध्य व धरती का केंद्र : जहां से होता है। परे ब्रह्माण्ड का समय निर्धारित...
महाकाल की इस भूमि यानि उज्जैन को लेकर तमाम रहस्य आज भी मौजूद हैं। कहा जाता है कि उज्जैन पूरे आकाश का मध्य स्थान यानी यही आकाश का केंद है। साथ ही उज्जैन पृथ्वी का भी केंद है, यानी यही वो जगह है जहां से पूरे ब्रमाण्ड का समय निर्धारित होता है। इसी जगह से ब्रह्माण्ड की कालगणना होती है साथ ही समय का केंद्र मानी जाने वाली इस धरती को महाकाल की धरती भी कहा जाता है। महाकाल की महिमा का वर्णन इस प्रकार से भी किया गया है
आकाशे तारकं लिंगं पाताले हाटकेश्वरम् ।
भूलोके च महाकालो लिंड्गत्रय नमोस्तुते ।।
इसका तात्पर्य यह है कि आकाश में तारक लिंग, पाताल में हाटकेश्वर-लिंग और पृथ्वी पर महाकालेश्वर ही मान्य शिवलिंग है। मान्यता के अनुसार महाकाल पृथ्वी लोक के अधिपति हैं, साथ ही तीनों लोकों के और सम्पूर्ण जगत के अधिष्ठाता भी है। कई धार्मिक अंगों जैसे शास्त्रों और पुराण में उनका जिक्र इस प्रकार किया गया है कि उनसे ही कालखंड, काल सीमा और काल विभाजन जन्म लेता है और उन्हीं से इसका निर्धारण भी होता है। इसका अर्थ ये है कि उज्जैन से ही समय का चक्र चलता है। पूरे बहमाण्ड में सभी चक्र यहीं से चलते हैं। फिर चाहे पृथ्वी का अपनी धुरी पर घूमना हो, चंद्रमा का पृथ्वी का चक्कर लगाना, पृथ्वी का सूर्य का चक्कर लगाना हो या फिर आसमान में किसी प्रकार का चक्र हो यह सब क्रियाएं महाकाल को साक्षी मानकर ही होती हैं। शिव महापुराण के 22वें अध्याय के अनुसार दूषण नामक एक दैत्य से भक्तो की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ज्योति के रूप में उज्जैन में प्रकट हुए थे। दूषण संसार का काल था और शिव शंकर ने उसे खत्म कर दिया इसलिए शंकर भोलेनाथ महाकाल के नाम से पूज्य हुए। अत: दुष्ट दूषण का वध करने के पश्चात् भगवान शिव कहलाये कालों के काल महाकाल उज्जैन में महाकाल का वास होने से पुराने साहित्य में उनको महाकालपुरम भी कहा गया है। उज्जैन में एक कहावत प्रसिद्ध है अकाल मृत्यु वो मरे जो काम करे चांडाल का, काल भी उसका क्या बिगाड़े जो भक्तो महाकाल का
भस्म से स्नान : एक बेहद गहरा राज...
पुराणों में मोक्ष देने वाली यानी जीवन और मृत्यु के चक्र से छुटकारा दिलाने वाली जिस सप्तनगरी का जिक्र है और न सात नगरों में एक नाम उज्जन का भी है। जबकि दूसरी तरफ महादेव का वो आयाम है जिसे महाकाल कहते हैं, जो मुक्ति की ओर ले जाता है। उज्जैन में कालमैरव व गढ़कालिका भी हैं, जिसमें काल का जिक्र आता है और काल यानी समय, जो उस समय के भी स्वामी हैं वे हैं महाकाल। उज्जैन में भस्म सान करने वाले महाकाल की विशिष्ट आराधना भी होती है। आदिदेव शंकर को भरम स्माना बेहद पसंद है, इसके पीछे का राज भी बेहद गहरा है। एक तरफ महाकाल रूप में अगर शिव समय के स्वामी हैं, तो काल भैरव के रूप में वो समय के विनाशक हैं। इन्ही सबके आसपस तो रहस्य छिया है जिसमें पता चलता है कि महादेव को राख या भरम क्यों पसंद है, क्यों उनकी आराधना में भस्म का स्नान या भस्म का तिलक इस्तेमाल होता है। महाकाल की ऐसी आराधना कहीं और देखने को नहीं मिलती। भस्म और महादेव का क्या नाता है। हालांकि ये रहस्य आज भी रहस्य है, लेकिन भस्म को लेकर कुछ सिद्धांत जरूर दिए गए हैं।
भस्म से श्रृंगार : मोह-माया से विरक्ति के लिए...
एक मान्यता के अनुसार शिव अपने शरीर पर चिता की राख मलते हैं और संदेश देते हैं कि आखिर में सब कुछ राख हो जाना है, ऐसे में सांसारिक चीजों को लेकर मोह-माया के वश में ना रहें और भस्म की तरह बनकर स्वयं को प्रभु को समर्पित कर दें।
सती से शिव के प्रेम का प्रतीक है भस्म
हिंदू धर्म के तमाम पंथों का प्रेरणास्रोत उज्जैन नगरीको माना जाता है। उन्हीं में से एक संप्रदाय जो मच्छेंद्र नाथ और गोरखानाय से होते हुए नवनाथ के रूप में प्रचलित हआ। इस संप्रदाय के साधु भी अक्सर भस्म रमाये मिलते हैं। शिव की पसंदीदा भस्म साधु-सन्यासियों के लिए प्रसाद है और वो अपनी जटाओं से लेकर पूरे शरीर में धुणे की भस्म लगाए मिलते हैं। वहीं शिवके बारे में एक अन्य मान्यता ये भी है कि भगवान शंकर की पहली पत्नी सती के पिता ने भगवान शंकर का अपमान किया जिससे आहत होकर सती यज्ञ के हवनकुंड में कूद गईं, जिससे शिव क्रोधित हो गए। शिव सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रमाण्ड में घूमने लगे। ऐसा लगा कि शिव के क्रोध से ब्रमाण्ड का अस्तित्व खतरे में है। तब श्री हरि विष्णु ने शिव को शांत करने के लिए सती को भस्म में बदल दिया और शिव ने अपनी पत्नी को हमेशा अपने साथ रमा लेने के लिए उस भस्म को अपने तन पर मल लिया। इसके अलवा महादेव की पहली पत्नी सती को लेकर एक अलग मान्यता भी है। जिसके अनुसार श्री हरि विष्णु ने देवी सती के शरीर को भस्म में नहीं बदला, बल्कि से उसे छिन्न्-भिन्न कर दिया। कहते हैं पृथ्वी पर 51 जगहों पर उनके अंग गिरे, इन्हीं स्थानों पर शक्तिपीठों की स्थापना दुई। जिसमें से एक शक्तिपीठ उज्जैन में भी है। जिसे वर्तमान काल में हरिसिद्धी माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है।