हनुमान जी ने सदैव अपनी बुद्धि के बल से बड़े से बड़े काम को पूरा करने में विजय हासिल की
हनुमानजी श्रीराम के परम भक्त हैं और हर पल अपने आराध्य की सेवा में रहते हैं। हनुमानजी की पूजा के साथ ही उनके स्वभाव की बातों को अपनाने से भी हमारी कई समस्याएं खत्म हो सकती हैं।
वाल्मीकि रामायण में हनुमानजी को पवनदेव का औरस पुत्र कहा गया है। उनका शरीर वन के समान है। वे तेज चलने में गरुड़ के समान हैं। बुद्धिमान और बलवान हैं। हनुमानजी का वन समान शरीर हमें संदेश देता है कि हमारा शरीर भी स्वस्थ और ताकतवर होना चाहिए। उनकी तेज चाल हमें तेज चलने की प्रेरणा देती है। हनुमानजी का बुद्धिमान स्वरूप हमें ज्ञान और बुद्धि बढ़ाने का संकेत देता है। हनुमानजी श्रीराम की सेवा में तत्पर रहते हैं। सुंदराकांड में जब हनुमानजी सीता की खोज में लंका जा रहे थे, तब मैनाक पर्वत ने उन्हें विश्राम करने के लिए कहा था, लेकिन हनमानजी ने कहा कि मैं श्रीराम का काम परा होने तक विश्राम नहीं कर सकता। लंका में रावण के सैनिकों ने हनुमानजी को बंधक बना लिया और उनकी पंछ में आग लगा दी थी। इसके बाद हनुमानजी साहस दिखाते हुए पूरी लंका को आग लगा दी। रावण के विरुद्ध युद्ध में हनुमानजी हमेशा श्रीराम के साथ रहे। मेघनाद के बाण से श्रीराम और लक्ष्मण घायल हो गए थे, तब हनुमानजी संजीवनी बूटी लेकर आए। हनुमानजी ने धैर्य और बुद्धि का उपयोग करते हुए ही देवी सीता की खोज की थी उन्होंने देवी सीता को कभी देखा नहीं था, वे सिर्फ देवी के गुणों को जानते थे। लंका में एक बार के प्रयास में देवी सीता को खोज नहीं सके थे। तब उन्होंने धैर्य बनाए रखा और दूसरी बार फिर कोशिश की। इसके बाद गुणों के आधार पर उन्होंने अशोक वाटिका में सीता खोज लिया।