उत्सव, पर्व, पूजा पाठ, हवन, मंगल ध्वनि, विवाह और आरती जैसे अवसरों पर शंख ध्वनि का पौराणिक महत्व है। शंख को विजय, समृद्धि, यश और शुद्धता का प्रतीक माना गया है। सतयुग त्रेता और द्वापर युग से जुड़े प्रसंगों में भी अनेक बाद शंखनाद का उल्लेख मिलता है। शंख ध्वनि की यह परंपरा आज भी समाज में पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ और आरती के अवसर पर महत्वपूर्ण मानी जाती है। पवित्रता का पुराणों के अनुसार शंख देवी लक्ष्मी का सहोदर एवं भगवान विष्णु का प्रिय है, जहां शंख होगा वहीं लक्ष्मी का निवास अवश्य होगा। देवी लक्ष्मी ने स्वयं विष्णु भगवान के सामने स्वीकार किया था। 'व सामि पद्मोत्पल शंख मध्येÓ, 'व सामि चंद्र च महेश्वरे च।Ó यानी मैं पद्म, उत्पल, शंख, चंद्रमा और शिवजी में निवास करती हूं। मान्यता है कि दक्षिणावर्ती शंख बहुत शुभ, श्री समृद्धि और वैभवकारी होता है। दक्षिणावर्ती शंख मिलना आसान नहीं। यह दुनिया बहुत कम स्थानों पर ही पाया जाता है और दुर्लभता के कारण इसकी कीमत ही अधिक होती है। सबसे अधिक शुभ श्रेष्ठ शंख को माना जाता है। आमतौर पर शंख लाल, पीला, काला तथा श्वेत के साथ अन्य रंग की धारियों वाले होते हैं। वैसे भी शंख की उत्पत्ति जल से ही होती है। जल ही जीवन का आधार है। सृष्टि की उत्पत्ति भी जल से हुई, इसलिए शंख की हर तरह से पवित्रता है शंख की प्रार्थना पूजा के आरंभ में शंखमुद्रा से शंख की प्रार्थना की जाती है।
शंख ध्वनि से खुश होती है माता लक्ष्मी