त्रिपुर सुंदरी मंदिर जबलपुर से 13 किमी दूर तेवर गांव में भेड़ाघाट रोड पर स्थित है। जबलपुर का प्रमुख आकर्षण होने के अलावा इस मंदिर को काफी प्राचीन और पवित्र माना जाता है। यह धार्मिक आस्था का प्रमुख केन्द्र है। 11वीं शताब्दी में बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां जो मूर्ति है वह धरती के अंदर से प्रकट हुई थी।
त्रिपुर का शाब्दिक अर्थ
त्रिपुर का शाब्दिक अथज़् होता है 'तीन शहर' और सुंदरी का अर्थ होता है 'खूबसूरत महिला'। ऐसे में इस मंदिर का अर्थ निकाला गया- तीन शहरों की खूबसूरत देवियां। हालांकि ऐसा कहा जाता है कि शक्ति के सिद्धांत में देवी के जो तीन रूप पाए जाते हैं, वही सही व्याख्या है और इसमें देवी की शक्ति और सामर्थ को प्रतीक के तौर पर लिया गया है। पूरे साल यहां हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। खासकर 10 दिवसीय दुर्गा पूजा या दशहरा उत्सव के दौरान यहां भारी भीड़ उमड़ती है। संतों और धार्मिक गुरुओं में त्रिपुर सुंदरी मंदिर विशेष स्थान रखता है। कहा जाता है कि इसका निमाज़्ण राजा कणज़् ने करवाया था। यहां पर एक शिलालेख मौजूद है। जिसके आधार पर इस बात की पुष्टि होती है।
गड़रिया की झोपड़ी
मंदिर में स्थापित मूर्ति के संबंध में कहा जाता है कि 1985 के पूर्व इस स्थान पर एक किला विद्यमान था जिसके अंदर यह प्राचीन मूर्ति थी। वहां पास में ही एक गड़रिया रहता था जो मूर्ति के पास ही अपनी बकरियों को बांधा करता था। मूर्ति का मुख पश्चिम दिशा की ओर था। बाद में धीरे-धीरे यहां कुछ अन्य विद्वानों का आना हुआ और मंदिर का विकास कार्य किया गया। अब भी इस स्थान पर मंदिर के ही समीप उस गड़रिया की झोपड़ी है।
ये है मान्यता
मां त्रिपुर सुंदरी के दरबार की प्रमुख मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु यहां पर सच्चे मन से आता है और यहां पर मन्नत का नारियल बांधकर जाता है तो उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। मां त्रिपुर सुंदरी शीघ्र ही उसकी अर्जी पर सुनवाई करती हैं। अब मंदिर का प्रबंध प्रशासन के जिम्मे है। मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां नारियल बांधने से देवी से की गई मन्नत पूरी होती है। परिणाम स्वरूप मंदिर का समूचा परिसर लाखों नारियल बंधे हुए है। त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा मानी जाती है। त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा स्थापित होने के पूर्व से ही इस मंदिर में सैकड़ो साल से आसपास के ग्रामीण हथियागढ़ वाली खेरदाई के नाम से मंदिर में शक्ति पूजन करते आ रहे है।
दो साल पहले भी खुली थी दानपेटी
बताया जा रहा है कि 2015 में भी दान पेटी खोली गई थी। जिसमें भक्तों द्वारा 2 लाख रुपए से अधिक चढ़ाए गए थे। मंदिर की दानपेटियां प्रशासनिक अधिकारियों की मौजूदगी में खोली गई थीं। पूरे दिन चली नोटों की गिनती के बाद दानपेटियों से कुल एक लाख 68 हजार 780 रुपए नकद निकले। पेटियों में सोने-चांदी के जेवर भी बड़ी मात्रा में पाए गए थे। तेवर स्थित यूनियन बैंक की शाखा से नोट गिनने की मशीन लाई गई थी।