रावण, कुंभकर्ण और विभीषण ने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या करके उनसे वरदान प्राप्त किये। विभीषण ने 5 हजार वर्ष तक अपना मस्तक और हाथ ऊपर रखकर तप किया जिससे भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए। विभीषण ने भगवान से असीम भक्ति का वर मांग लिया। विभीषण श्रीराम के भक्त बने और आज भी वे अजर-अमर हैं।
कुंभकर्ण ने इंद्र लोक की अभिलाषा के लिए 10 हजार वर्षों तक कठोर तप किया। उसकी तपस्या पूरी हुई किन्तु जब ब्रम्ह देव वरदान देने लगे तब देवी देवी सरस्वती कुंभकर्ण की जिह्वा पर विराजमान हो गईं और कुंभकर्ण ने इंद्रासन की जगह निंद्रासन मांग लिया। उसने हर समय सोते रहने का वरदान मांग लिया और इस वरदान के परिणाम सवरूप कुंभकर्ण अनेको वर्षों तक सोता रह सकता था।रावण ने अपने भाइयों से भी अधिक कठोर तप किया। रावण को धर्म और पांडित्य का पूरा ज्ञान था और वह सबसे बुद्धिमान भी था। वो प्रत्येक 11वें वर्ष में अपना एक शीश भगवान के चरणों में समर्पित कर देता। इस तरह उसने भी 10 हजार साल में अपने दसों शीश भगवान को समर्पित कर दिए। उसके तप से प्रसन्न होकर उसको उसका मन चाहा फल दे दिया। रावण ने देव, दानव, दैत्य, राक्षस, गंधर्व, किन्नर, यक्ष आदि सभी दिव्य शक्तियां उसका वध न कर सके ऐसा वरदान माँगा। रावण ने मनुष्य और जानवरों को तुच्छ समझता था इसलिए वरदान में उसने इनको छोड़ दिया। यही कारण था कि भगवान विष्णु को उसके वध करने के लिए मनुष्य अवतार में आना पड़ा और भगवान श्री विष्णु ने राम अवतार धारण कर रावण का अंत कर असत्य पर सत्य की जीत की।
भगवान विष्णु ने रावण का वध करने लिया श्री राम अवतार