ग्रहण के दौरान भोजन नहीं करना चाहिए, मनुष्य की पाचन-शक्ति हो जाती है कमजोर

भूकंप और ग्रहण के दौरान पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिए


सूर्य ग्रहण को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलन में हैं। इन मान्यताओं के अनुसार गर्भवती महिलाओं और बच्चों को सूर्यग्रहण के दौरान रवास सावधानी बरतने की हिदायत दि जाती है। ग्रहण के सूतक काल में रवाने-पीने की मनाही की जाती है। पौराणिक ग्रथों में ग्रहण के संबंध में इस तरह की बातों का विस्तार से वर्णन किया गया है।



धार्मिक मान्यताएं


पौराणिक काल में सनातन संस्कृति के संत-महात्माओं ने सूर्य ग्रहण के सूतक काल के दौरान भोजन करने का निषेध बताया गया है। मान्यता है कि ग्रहण के दौरा हानिकारक कीटाणुओं का फैलाव तेजी से होता है। ये सूक्ष्म जीवाणु खाद्य सामग्री के संपर्क में आकर उसको दूषित कर देते हैं। तैयार खाद्ध सामग्री को दूषित होने से बचाने के लिए उसमें कुश घास या तुलसी दल डालने का कहा गया है। ग्रहण की समाप्ति के बाद कुश या तुलसी को निकालकर बाहर फेक दिया जाता है, जिससे खाद्य सामग्री की शुद्धता बरकरार रहती है। बर्तनों में अग्नि डाली जाती है, जिससे उनमें मौजूद विषैले जीवाणु खत्म हो जाए। ग्रहण की समाप्ति पर स्नान का भी विधान बताया गया है। स्नान करने से शरीर के अंदर मौजूद ऊष्मा में वृद्धि होती है और शरीर पर मौजूद किटाणु नष्ट हो जाते हैं, या नदी, सरोवर में स्नान करने से बह जाते हैं।


ग्रहण के दौरान संयम बरतें और सावधानी रखें


शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पहले और चंद्र ग्रहण में तीन प्रहर पहले से भोजन का त्याग कर देना चाहिए। वृद्ध, बच्चे और रोगी ग्रहण के प्रहर पूर्व तक भोजन ग्रहण कर सकते हैं। देवी भागवत में कहा गया है कि भूकंप और ग्रहण के दौरान पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये। ग्रहण के दौरान पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूलों को नहीं तोडना चाहिए। दातुन नहीं करना चाहिए, बालों को नहीं धोना चाहिए और कपड़ों को भी नहीं निचोड़ना चाहिए। इसके साथ ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, और मैथुन करने का भी निषेध रहता है।


गर्भवती के सूर्यग्रहण देखने की है मनाही


पौराणिक शास्त्रों से लेकर ऋषि-मुनियों के ज्ञान तक में सूर्य ग्रहण के दौरान कुछ खास सावधानियां बरतने की बात कही गई है। विज्ञान भी सनातन काल से चली आ रही इन वादक परंपराओं और ज्ञान की पुष्टि करता है, जिसमें सूर्य ग्रहण के दौरान सूर्य की रश्मियों के हानिकारक प्रभाव का बात कही गई है। भारतीय मनीषियों का कहना है कि ग्रहण के दस घंटे पहले इसका प्रभाव शुरू हो जाता है और मानव जीवन पर इसका - असर पड़ना प्रारंभ हो जाता है। सूर्य-चंद्र ग्रहण के दौरान मनुष्य की पाचन-शक्ति कमजोर हो जाती है, जिसके कारण इस दौरान ग्रहण किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक इस या मानसिक तकलीफ पहुंचा सकता है। इस दौरान भोजन करने से जीवन शक्ति का भी वास होता है। इससे बचने के लिए तुलसी या कुश को भोजन सामग्री में डाल देते हैं। मान्यता है कि तुलसी दल में विद्युत शक्ति और प्राण शक्ति सबसे ज्यादा होती है। इससे भोजन सामग्री चारों और व्याप्त प्रदूषण से सुरक्षित रहती है। पुराणों के अनुसार सूर्य ग्रहण के दौरान जठराग्नि, नेत्र तथा पित्त की शक्ति कमजोर हो जाती है। गर्भवती स्त्री के संबंध में कहा गया है गर्भवती स्त्री को सूर्य- चंद्र ग्रहण नहीं देखने चाहिए, क्योंकि ग्रहण के दुष्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग अवस्था में जन्म ले सकता है और गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। यह भी मान्यता है कि गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप कर दिया जाता है, जिससे उसके गर्भ का राहु-केतु स्पर्श न कर सके। गर्भवती को कैंची, चाकू आदि धारदार सामान के इस्तेमाल और सिलाई की भी मनाही की जाती है। क्योंकी ऐसा करने से गर्भ में पल रहे बच्चों के अंगऐसा करने से गर्भ में पल रहे बच्चों के अंग- भंग होने या उनके सिल जाने का खतरा रहता है। ग्रहण के बाद दान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। ग्रहण का दान डोम को देने का शास्त्रोकत विधान है, क्योंकि डोम को राहुकेतु का स्वरूप माना गया है।


माता पार्वती के शाप से समुद्र का जल हुआ खारा


हमारी पौराणिक कथाओं में समुद्र का भी धार्मिक महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यतानुसार, समुद्र मंथन के अलावा समुद्र का जल खारा होने के पीछे भी कुछ रहस्य हैं। दरअसल पौराणिक कथाओं की मानें तो पूर्व में समुद्र का पानी दूध की तरह सफेद और मीठा था। लेकिन समुद्र के जल का वर्तमान स्वरूप ऐसा नहीं है अब समुद्र का पानी खारा हो चुका है और यह किसी भी व्यक्ति के लिए पीने योग्य नहीं है।


देवी पार्वती ने की थी घोर तपस्या


शिव महापुराण के अनुसार, भगवान शिव को पाने के लिए हिमालय पुत्री पार्वती ने कठोर तपस्या की थी, उनकी तपस्या के तेज से तीनो लोक भयभीत हो उठे। जब सभी देवता इस समस्या को हल करने के लिए इसका उपाय लंडने में लगे थे तब समद्र देवता माता पार्वती के स्वरूप पर मोहित हो गए।


समुद्र ने प्रकट की माता पार्वती से विवाह करने की इच्छा


जब माता पार्वती की तपस्या पूरी हो गई ता साद देवता ने देवी शा से विवाह का प्रस्ताव रखा। याने समुददेव की भावनाओं का ध्यान रखते हुए सम्मानपूर्वक करा कि मैं पहले से ही भगवान शिव से प्रेम करती हूं। यह सुनकर सद देव कोधित हो गए और भोलेनाथ को भला बुराकरने लगे। ज्ोंने भगवान शंकर का तिरस्कार कनते हुए का कि उस भरमारी आदिवासी में ऐसा क्या है जो मुझमें नहीं है, मैं सभी मनुष्यों की प्यास बुझाताहूं और मेश चिट्य की मह सफेद है। हे ना, मुझसे विवाह के लिए हामी भर दो और समुद की रानी बन जाओमहादेव के अपमान लेते देख माता पार्वती समुद देवता पर अत्यंत कोधित हुई और गुस्से में उन्होंने समुद देवको शापदे दिया कि जिस मीठे जलपर तुम्हें इतना अभिमान और धमंड है, वह यारा हो जाएगा और तुम्टा जल प्रत्ण कनना किसी भी मनुष्य के लिए सुरक्षित नहीं रहेगा। धार्मिक मान्यतानुसार तब से टी समुद का पानी बारा और पीने योग्य नटी रखा।