यीशु मसीह के कई चमत्कार देखकर कट्टरपंथी यहूदी ईष्र्या करने लगे। प्रभु के कंधों पर लकड़ी के क्रूस को रखकर पहाड़ी व कटीले रास्ते पर चलाया गया। सिर पर कांटों का ताज पहनाया गया। प्रभु के हाथों व पैरों में कीलों को ठोका गया।
उस समय प्रभु यीशु की आयु केवल 33 वर्ष की थी। जब प्रभु को क्रूस पर चढ़ाया गया तो उनके बांयी व दायीं ओर एक-एक डाकू भी क्रूस पर लटकाया गया और उनको भी मृत्युदंड दिया जा रहा था। एक डाकू ने कहा कि क्या तू मसीह नहीं? तो फिर तू अपने आप को और हमें बचा। दूसरे डाकू ने कहा कि जब तू अपने राज्य में जाए तो मेरी भी सुधि लेना, क्रूस पर दोषपत्र लिखकर टांगा गया था क्योंकि इसी दोष के कारण प्रभु को मृत्युदंड दिया गया था। डाकू ने उसी समय अपने पापों का अंगीकार किया और कहा कि हम तो न्याय अनुसार दण्ड पा रहे हैं। उसने आग्रह किया कि हे यीशु जब तू अपने राज्य में आए तो मेरी भी सुधि लेना। उसने यह विश्वास कर लिया कि स्वर्ग में स्थान दिलाने का अधिकार यीशु के पास है।
यीशु के क्रूस पर कहे गए आखिरी वचन-हे पिता मैं अपनी आत्मा तेरे हाथों में सौंपता हूं (लूका 23.46) प्रभु यीशु मसीह की मृत्यु न तो कोड़े लगने से न तो सताने से हुई थी बल्कि अपनी स्वेच्छा से अपनी आत्मा को पिता परमेश्वर के हाथों में सौंप दिया। बाइबिल के अनुसार प्रभु ने ईश्वर जगत से ऐसा प्रेम किया कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया ताकि जो उस पर विश्वास करे वह नाश न हो वरन् अनंत जीवन पाए। क्रूस पर 6 घंटे लटकाया गया। इस दौरान प्रभु यीशु ने 7 वचन दिए।